बैसाख की गर्मी चढ़ने के साथ चुनावी गर्मी ने देश में एक अलग किस्म की गर्माहट पैदा कर दी है.
टप टप चूते पसीने के बीच समर्थकों के जिंदाबाद के नारे नेताओं के मिजाज को हरियर बना तो रहे लेकिन पेशानी पर शिकन भी ला रहे.
संसद के एक सदन राज्यसभा आमतौर पर बुद्धिजीवियों,लेखकों,कलाकारों,समाजसेवियों जैसे लोगों के लिए "आरक्षित" होते थे.
मगर बढ़ती आमद,असमय बढ़ते रसूख और सत्ता की बढ़ती हनक ने सबके अंदर लोकसभा से सदन पहुंचकर अपनी लोकप्रियता साबित करने की ललक जगा दी है.
कुछ ऐसा ही काराकाट में पवन सिंह की "लैंडिंग" से लगता है.
हेलीकॉप्टर प्रत्याशी के तौर पर उतरे पवन सिंह काराकाट से अपनी उम्मीदवारी देकर लोकसभा क्षेत्र में मनोरंजन की बयार बहाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे ऐसा ही कुछ लगता है.
सिलेब्रिटी की जीवन शैली से हर कोई वाकिफ है.
एसी की हवा और रात की "दवा" के बिना नींद नहीं आने की शिकायत करते डॉक्टरों के पास पहुंचने वाले इन सेलेब्रिटीयों को लगता है कि अपनी लोकप्रियता के दम पर वो लोकसभा जैसा प्रतिष्ठित चुनाव ऐसे निकाल लेंगे जैसे महुआ के पेड़ के खोल से हम तोते के बच्चे को कभी बचपन में निकाल लाया करते थे.
वैसे तो बिहार में राजनीति की बिसात जातियों के चौसर पर ही बिछती है लेकिन उपेंद्र कुशवाहा नाम का यह शख्स जब चुनाव मैदान में उतरता है तो उसके सामने जाति की बात बड़ी ओछी लगने लग जाती है.
देश में सर्वप्रथम जब उन्होंने कोलेजियम के तहत सभी गरीब सवर्णों,ओबीसी,दलितों,अल्पसंख्यकों के हितों की बात सार्वजनिक मंचों से सीना ठोककर कहीं तब ऐसा कभी नहीं लगा कि वो किसी जाति विशेष के नेता रहे हैं.पढ़ाई कमाई दवाई के मुद्दे को लेकर राजनीति करने वाले उपेंद्र कुशवाहा ने जब पटना की सड़कों पर पुलिस की लाठियां खाते हुए अपने सर फुडवाए तब भी उस आदमी के चेहरे पर शिकन नहीं थी.
संघर्ष के दरम्यान भी मुस्कान के साथ मिलने वाले उपेंद्र कुशवाहा के पास जनता के बीच जाने के लिए कई सारे मुद्दे हैं,उपलब्धियां हैं,तरकश में तीर हैं,जनता के हितों के लिए संघर्षों के दरम्यान कभी न भूल सकने वाली आवाजें हैं,भाषणों के अंश हैं जिन्हे आप सुनकर उनमें एक जननेता का दर्शन अनुभव कर सकते हैं.
दूसरी तरफ अपनी एक्टिंग और फूहड़ गायन से भोजपुरी जैसी मीठी भाषा को बदनाम करके अपनी जेब भरने वाले पवन सिंह के पास उपलब्धि के नाम पर ढोरी चटना बा,चोलिया में मलाई,दिया बुता के पिया क्या क्या किया जैसे विकासशील गाने हैं,जिन्हे लेकर पवन जनता के बीच जायेंगे तब यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि जनता ढोरी चाटना और चोलिया में मलाई पर वोट देती है या फिर कोलेजियम जैसे मुद्दे उठाने वाले उपेंद्र कुशवाहा के संघर्षों पर.